अथ-पारसी-बैंत-ath
अथ पारसी बैंत | Ath Parsi Baint | Amargranth Sahib by Sant Rampal Ji Maharaj
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बंदे जान साहिब सार बे, पिदर मादर आप कादिर, नहीं कुल परिवार बे।।1।।
जल बूंद से जिन साज साज्या, लहम दरिया नूर बे। है सकल सरबंग साहिब, देख निकट न दूर बे।।2।।
जिन्द जूनी बे नमूनी, जागता गुरु पीर बे। उलट पट्टण मेर चढ़ना, लहम दरिया तीर बे।।3।।
अजब साहिब है सुभानं, खोज दम का कीन्ह बे। त्रिकुटी के घाट चढ़ कर, ध्यान धर दुरबीन बे।।4।।
अजब दरिया है हिरंभर, परमहंस पिछान बे। आब खाख न बाद आतश, ना जिंमी असमान बे।।5।।
अलख आप अलह कबीर साहिब, कुर्ष कुंज जहूर बे। अर्श ऊपर महल मालिक, दर झिलमिला नूर बे।।6।।
मौले करीम खुदाय खूबी, धुंनि सहंस जाप बे। बंग रोजा निमाज कलमां, है शब्द गरगाप बे।।7।।
निर्भय विहंगम नाद बाजै, निरख कर टुक देख बे। अर्शी अजूनी जिंद योगी, अलख आदि अलेख बे।।8।।
मढ़ी महल सतलोक तास के, आसन असंभी ऐन बे। पाजी गुलाम गरीब तेरा, देखते सुख चैंन बे।।9।।1।।
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बंदे खोज पैंडा पकड़ बे, लेखा सरे में लीजियेगा, कर धनी का जिकर बे।।1।।
जिकर फिकर फरियाद कर ले, अंदरूंनी अर्श बे। हाली मुवाली याद कीजैं, ना सरे में तरस बे।।2।।
रसना रंगीला राम जप ले, अलख कादिर आदि बे। पीरां फकीरां परख ले, पूजो स्नेही साध बे।।3।।
दरगह मिटै ज्यों डंड तेरा, नेकी निरंतर राख बे। ना पैद से पैदा किया, तूं नाम बिन ना पाक बे।।4।।
दिल साफ कर सैलांन कीजै, बंक मार्ग बाट बे। इला पिंगुला सुषमनां, तूं उतर औघट घाट बे।।5।।
बंक नाल विशाल बहना, है अमीरस अर्श बे। रसना विहूंना राग गावै, बिना चिसमौं दर्श बे।।6।।
प्याला अमीरस पीजिये, खूल्हे हैं बज्र कपाट बे। अर्श कुर्श अबंध अबिगत, कोल्हू चलै बिन लाठ बे।।7।।
निर्भय निरंतर नेम रख, अकलां अनाहद रात बे। मुक्ता मुलायम कर याद साहिब, दूर कर दिल घात बे।।8।।
योगी बियोगी बिंद रख, सुन्न में समान समानां सिंध बे। हाजिर गुलाम गरीब है, सोलह कला रवि चंद बे।।9।।2।।
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बंदे देख ले दुरबीन बे, ऐंनक उघार किवार खोल्हौ, चलै जल बिन मीन बे।।1।।
बिना जल जहां मीन चलता, नाम नौका अधर बे। बेड़े विमान अमान देखो, को लखै याह कदर बे।।2।।
पानी बिना सरबर सरू, जहां फूल है गुलजार बे। अधर बाग अनंत फल, कायम कला करतार बे।।3।।
कर निगाह अगाह आसमान, बरषता बिन बदर बे। बीना पखावज ताल सुर, बाजे बजैं जहां मधुर बे।।4।।
चिशम बंक अनंक नासा, अधर महल आकाष बे। दरी खानैं दम दुलीचा, सूक्ष्म कर दम श्वास बे।।5।।
बांणी बिनोद असोध पुर, जहां चंदा नहीं सूर बे। पानी पवन नहीं भवन भारी, कला संख सपूर बे।।6।।
कायम कुलफ कूंची लगी, खोल्है सोई सत पीर बे। कहता दास गरीब तबीब तन, चंगा करत कबीर बे।।7।।5।।
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